Chhath Puja in Bihar-The Most Powerful & Spiritual Festival of Faith और Positive Energy का Glorious Celebration
जानिए बिहार की Chhath Puja की सच्ची कहानी, इतिहास, विधि, व्रत, प्रसाद और वैज्ञानिक महत्व। सूर्य उपासना का सबसे पवित्र पर्व छठ पूजा.
Chhath Puja बिहार में: आस्था, परंपरा और सूर्य उपासना का अद्भुत उत्सव
भारत को त्योहारों की भूमि कहा जाता है। यहाँ हर पर्व केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि समाज के लिए एक गहरा संदेश लेकर आता है। पर जब बात आस्था, श्रद्धा और शुद्धता की होती है, तो Chhath Puja का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है। बिहार में यह केवल एक त्योहार नहीं बल्कि जीवन का हिस्सा, संस्कृति की पहचान और आस्था का महान प्रतीक है।
छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पर्व है, जिसमें लोग प्रकृति और जीवनदाता सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई इलाकों में इसे पारंपरिक तौर पर बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है। इस त्योहार की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है, जब पूरा समाज एकजुट होकर शुद्धता और पवित्रता के नियमों का पालन करता है।
आइए जाने बिहार में छठ पूजा का क्या महत्व है, इसका इतिहास कहाँ से जुड़ा है, इसे किन परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, क्या हैं इसके वैज्ञानिक पहलू, और आज के समय में इसका स्वरूप कैसे बदल रहा है। Chhath Puja केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बिहार की सांस्कृतिक आत्मा का उत्सव है, जो हज़ारों वर्षों से यहाँ की मिट्टी में बसी आस्था और एकता की कहानी सुनाता है।
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छठ पूजा क्या है?
छठ पूजा एक बहुत ही प्राचीन वैदिक पर्व है जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। यह चार दिनों तक चलने वाला व्रत साल में दो बार मनाया जाता है चैत्र माह में जिसे चैती छठ कहते हैं, और कार्तिक माह में जिसे कार्तिकी छठ कहा जाता है। कार्तिक छठ सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से मनाई जाती है। इसके नाम से ही स्पष्ट है “छठ” यानी छठे दिन की पूजा, जो दीपावली के छठे दिन सम्पन्न होती है।
छठ पूजा का इतिहास और पौराणिक कथाएँ
छठ पूजा का उल्लेख ऋग्वेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है। यह पर्व प्रकृति, सूर्य और जल के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है।
1. महाभारत की कथा:
कहते हैं कि पांडवों के वनवास के दौरान कुंती और द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। छठी मैया की कृपा से उन्हें शक्ति, धैर्य और मानसिक शांति प्राप्त हुई। इसीलिए इसे “कुंती व्रत” भी कहा जाता है।
2. सूर्य पुत्र कर्ण की कथा:
कर्ण, जो सूर्य देव के पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्य को अर्ध्य देते थे। इसी साधना से उन्होंने अद्भुत शक्ति अर्जित की थी। छठ पूजा उसी सूर्य उपासना की परंपरा का प्रतीक है।
3. लोककथा छठी मैया का वरदान:
लोकमान्यता के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को संतान नहीं थी। रानी ने छठी देवी की पूजा की, और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसी कथा के कारण छठी मैया को संतानदायिनी देवी के रूप में पूजा जाता है।
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बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व
बिहार में Chhath Puja केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और सामूहिकता का उत्सव है। इस समय गाँव से लेकर शहर तक, हर नदी किनारा, पोखर और घाट भक्तिमय वातावरण से भर जाता है। लोग मानते हैं कि सूर्य और प्रकृति की पूजा से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इस पर्व में किसी मूर्ति की नहीं, बल्कि सूर्य, जल और धरती की प्रत्यक्ष पूजा होती है।
चार दिनों का व्रत क्रम
छठ पूजा अत्यंत अनुशासित चार दिवसीय व्रत होता है:
पहला दिन – नहाय-खाय:
इस दिन व्रती स्नान करने के बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन बनाती हैं, जो प्रायः लौकी-भात और चना दाल होता है। भोजन कांसे या मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है।
दूसरा दिन – खरना:
व्रती पूरा दिन निर्जल उपवास रखती हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़-की-खीर, रोटी और केला का प्रसाद तैयार करती हैं। इसके बाद वे 36 घंटे का कठोर निर्जल व्रत रखती हैं।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
संध्या के समय घाटों पर लाखों भक्त एकत्र होकर डूबते सूर्य को अर्ध्य अर्पित करते हैं। गीत-भजन और दीपों से पूरा घाट आलोकित हो उठता है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य:
सूर्योदय से पहले व्रती नदी किनारे पहुँचती हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। इसके बाद व्रती जल और प्रसाद ग्रहण करती हैं।
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पारंपरिक प्रसाद और विशेष भोजन
छठ का प्रसाद सात्विक और शुद्ध होता है, जिसे मिट्टी या ताँबे के पात्र में बनाया जाता है। मुख्य प्रसाद हैं:
ठेकुआ (गेहूं और गुड़ से बना मीठा पकवान)
कसार (आटा, घी, गुड़ का मिश्रण)
गुड़-की-खीर
चावल लड्डू एवं मौसमी फल जैसे केला, गन्ना, नारियल
हर प्रसाद श्रद्धा और आभार का प्रतीक होता है।
पूजा की सामग्री
छठ में प्रयुक्त प्रमुख सामग्री में सूप, कलश, दीपक, सूर्य चित्र, गन्ना, आम के पत्ते, मिट्टी का चूल्हा, गंगा जल और पवित्र मिट्टी शामिल होते हैं। हर वस्तु का प्राकृतिक और धार्मिक महत्व माना गया है।
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लोकगीत और भक्ति
Chhath Puja की पहचान इसके लोकगीतों से भी जुड़ी है। महिलाएँ समूह में छठी मैया के गीत गाती हैं जैसे
- काँच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…
- उग हो सूर्य देव भइली अरघ के बेर….
ये लोकगीत श्रद्धा, प्रेम और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
Chhath Puja का एक वैज्ञानिक पहलू भी है:
सूर्य के प्रकाश से शरीर में विटामिन D का निर्माण होता है।
जल में खड़े रहने से रक्त संचार और ऊर्जा प्रवाह संतुलित होते हैं।
उपवास शरीर को डिटॉक्स करता है।
ध्यान और भक्ति मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं।
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बिहार के प्रसिद्ध घाट
बिहार के प्रमुख छठ स्थल हैं: पटना का गंगा घाट, मुजफ्फरपुर का काली घाट, आरा का सोन नदी घाट, और गया, भागलपुर, दरभंगा के सरोवर। इन स्थलों पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
विदशों में छठ पूजा
आज प्रवासी बिहारी समुदाय के कारण Chhath Puja अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल चुकी है। अमेरिका, दुबई, यूके, मॉरीशस, नेपाल और फिजी जैसे देशों में यह पर्व भव्यता से मनाया जाता है, जो बिहार की सांस्कृतिक पहचान को विश्व तक पहुँचाता है।
छठ पूजा और सामाजिक एकता
यह त्योहार जाति, धर्म या वर्ग का भेद मिटाता है। सभी लोग मिलकर घाट सजाते हैं, प्रसाद बांटते हैं और एक-दूसरे की सहायता करते हैं। यह बिहार की सामाजिक सामूहिकता और एकजुटता का सर्वोत्तम प्रतीक है।
आधुनिक समय में छठ पूजा
आज के दौर में भी Chhath Puja की पवित्रता बरकरार है। लोग स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और प्लास्टिक-मुक्त आयोजन पर ध्यान दे रहे हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों पर भी यह पर्व नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ रहा है।
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FAQs
1. यह पूजा कितने दिन की होती है?
चार दिन नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य।
2. छठी मैया कौन हैं?
छठी मैया को ऊषा देवी, अर्थात सूर्य देव की पत्नी कहा जाता है।
3. क्या पुरुष भी व्रत रख सकते हैं?
हाँ, कई स्थानों पर पुरुष भी श्रद्धा से व्रत करते हैं।
4. छठ पूजा में क्या खाया जाता है?
पहले दिन सात्विक भोजन, दूसरे दिन खरना का प्रसाद, फिर निर्जल उपवास के बाद अर्घ्य के समय प्रसाद।
5. यह पूजा पर्यावरण से कैसे जुड़ी है?
यह सीधे प्रकृति सूर्य, जल, मिट्टी और वायु की पूजा है, इसलिए इसे इको-फ्रेंडली पर्व माना जाता है।
निष्कर्ष: आस्था का अद्भुत संगम
छठ पूजा बिहार की आत्मा है।
यह सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सूर्य की ऊर्जा, माँ छठी की कृपा और मानवता की एकता का प्रतीक है।
हर साल जब घाटों पर “छठी मइया की जय” की गूंज उठती है,
तो बिहार ही नहीं, पूरा भारत आस्था की रोशनी में नहा जाता है।
छठ केवल पूजा नहीं, यह एक भावना है
जहाँ प्रकृति, परिवार और समाज सब मिलकर सूर्य को प्रणाम करते हैं।
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